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Showing posts from July, 2020

आखिर क्यों हर युग में गजानन बदलते हैं अपना वाहन?

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आखिर क्यों हर युग में गजानन बदलते हैं अपना वाहन? Updated: Wed, 20 Jan 2016 05:22 PM (IST) चूहे में इसके अलावा और भी कई गुण होते हैं, यही कारण है कि गणेशजी ने चूहे को ही अपना वाहन चुना था। देवों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश जी का वाहन चूहा है। चूहा जिसे संस्कृत में मूषक कहते हैं, जो कि शारीरिक आकार में छोटा होता है। गणेश जी बुद्धि के देवता है तो चूहा को तर्क-वितर्क का प्रतीक माना गया है। चूहे में इसके अलावा और भी कई गुण होते हैं, यही कारण है कि गणेशजी ने चूहे को ही अपना वाहन चुना था। गणेश पुराण के अनुसार हर युग में गणेश जी का वाहन बदलता रहता है। सतयुग में गणेश जी का वाहन सिंह है। त्रेता युग में गणेश जी का वाहन मयूर है और वर्तमान युग यानी कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है। चूहा द्वापर युग में उनका वाहन था। चूहा कैसे बना गणेश जी का वाहन? इस बारे में हमारे धर्मग्रंथों में एक पौराणिक कहानी का उल्लेख मिलता है। कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार महर्षि पराशर अपने आश्रम में ध्यान अवस्था में थे। तभी वहां कई चूहे आए और उनका ध्यान भंग करने लगे। उन चूहों ने आश्रम को तहस-नहस कर दिया। पढ़ें: यहां देखें मुहूर्त औ...

तो क्या राधा ही रुकमणी थीं

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तो क्या राधा ही रुकमणी थीं Updated: | Tue, 19 Jan 2016 04:52 PM (IST) महाकाव्य 'महाभारत' में एक प्रसंग है, जिसमें माता लक्ष्मी के रहस्य के बारे में बताया गया है। संसार के सबसे बड़े महाकाव्य 'महाभारत' में एक प्रसंग है, जिसमें माता लक्ष्मी के रहस्य के बारे में बताया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार एक बार युधिष्ठिर ने भीष्म से प्रश्न किया, रुक्मणी और राधा में क्या समानता है। तब भीष्म ने बताया कि, एक बार लक्ष्मी जी ने रुक्मिणी से कहा कि मेरा निवास तुममे (रुक्मिणी) और राधा में का निवास गोकुल कि गोलोक में निवास है। राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थी। राधा की माता कीर्ति के लिए 'वृषभानु पत्नी' शब्द का प्रयोग किया जाता है। पद्म पुराण में इस बात का विस्तार से उल्लेख मिलता है। पढ़ें: युयुत्सु था महाभारत युद्ध के बाद एकमात्र बचा कौरव श्रीकृष्ण के तत्व दर्शन को रुक्मिणी को देह और राधा को आत्मा माना गया है। श्रीकृष्ण का रुक्मिणी से दैहिक और राधा से आत्मिक संबंध माना गया है। रुक्मिणी और राधा का दर्शन बहुत गहरा है। इसे सम्पूर्ण सृष्टि के दर्शन से जोड़कर देखें तो सम्पू...

तो क्या प्रतापभानु ही था 'रावण'!

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तो क्या प्रतापभानु ही था 'रावण'! Updated: Mon, 29 Feb 2016 05:10 PM (IST) जल्द ही सोमदत्त और कालसेतु दोनों ही ब्रह्माण वेश में प्रतापभानु के राज्य में पहुंचे। कैकय देश का राजा था 'प्रतापभानू' वह साहसी और धर्मपरायण था। प्रतापभानु का एक भाई था नाम था 'अरिमर्दन'। उनका विद्वान मंत्री 'धर्मरुचि' उन्हें हमेशा नीतियुक्त कार्यों के लिए प्रेरित करता था। वह भगवान विष्णु का भक्त था। इस तरह इन तीन विद्वानों की देखरेख में कैकय देश का राज्य बेहतर तरीके से संचालित किया जा रहा था। इस पौराणिक कथा का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। कैकय देश के नजदीक 'सोमदत्त' नाम का राजा राज्य करता था। वह आसुरी प्रवृत्ति का था। वह कैकय देश को हासिल करने की ख्वाहिश रखता है। एक दिन कैकय नरेश प्रतापभानु को समाचार मिला कि, राज्य में एक जंगली शूकर (सुअर) उत्पात मचा रहा है। तब राजा उसका शिकार करने के लिए अपने सैनिकों के साथ चल दिए। जंगली शूकर को खोजते हुए वह अपने सैनिक से बिछड़ गए। वह काफी प्यासे और भूखे थे, तभी राजा को एक ऋषि की कुटिया दिखाई दी। राजा ने वहां जलपान किया। ऋषि ने राज...

तो क्या रावण के नहीं थे 10 सिर

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तो क्या रावण के नहीं थे 10 सिर Updated: Tue, 03 May 2016 03:14 PM (IST) और रावण का 10 वां सिर प्रसिद्धि, धन और असंवेदनशीलता को दर्शाता है। रामायण के कुछ संस्करणों में उल्लेख मिलता है रावण के दस सिर है लेकिन ऐसा नहीं था। क्योंकि रावण की मां ने उसे 9 मोती का 1 हार दिया था, जो देखने वाले को एक मतिभ्रम (ऑप्टिकल) पैदा करता था। जिससे उसके मूल सिर को जोड़ कर 10 सिर दिखाई देते थे।  वाल्मीकि रामायण के अनुसार ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए रावण टुकड़ों में अपने ही सिर काट दिया था, लेकिन जब ब्रह्माजी ने उसे दर्शन दिए तो उन्होंने वरदान स्वरूप उसे 9 सिर का वरदान भी दिया। रावण के इन 10 सिरों में दायीं तरफ के 6 सिर शास्त्रों को और बायीं तरफ के 4 सिर वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि त्रेतायुग में सबसे विद्वान ब्रह्मण यदि इस धरती पर था वो रावण ही था। भारतीय पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण के 10 सिर कई मनोभावों को प्रदर्शित करते हैं। रावण का पहला और मुख्य सिर पद और योग्यता को दर्शाता है। जिसके कारण अहंकार आता है। रावण मरने के कुछ क्षण पहले तक अहंकार के व...

तो क्या यहां है पारस मणि

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तो क्या यहां है पारस मणि Updated: | Fri, 11 Nov 2016 12:38 PM (IST) नाग देवता से जुड़ी पौराणिक कहानियों में सांप के सिर पर मणि होने के उल्लेख मिलता है। यह मणि एक चमकता पत्थर होती है। जिसकी तुलना हीरे से की जाती है। लेकिन पौराणिक कहानियों में जरूर इसका उल्लेख हो, लेकिन आधुनिक जीव वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा कुछ भी नहीं होता। त्रेतायुग की बात की जाए तो रावण ने कुबेर से चंद्रकांत नाम की मणि छीनी थी। वहीं द्वापरयुग में अश्वत्थामा के पास भी मणि थी, जिसके कारण वह शक्तिशाली था। इन दोनों ही बातों का उल्लेख धर्म ग्रंथों में विस्तार से उल्लेखित है। त्रिदेव भी मणि को धारण करते हैं। चिंतामणि को स्वयं ब्रह्माजी धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। रुद्रमणि को भगवान शंकर धारण करते हैं। तरह तरह की मणि पारस मणि का उल्लेख लोक कथाओं में मिलता है। कहते हैं मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है, वहां से 70 किलोमीटर दूर दनवारा गांव के एक कुएं में रात को रोशनी दिखाई देती है। लोगों का मानना है कि कुएं में पारस मणि है। पारस मणि से लोहे की किसी भी चीज को स्पर्श कराने पर वह सोने...

इन मणियों के विविध चमत्कारों को जानकर हो जाएंगे अभीभूत

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X इन मणियों के विविध चमत्कारों को जानकर हो जाएंगे अभीभूत PRATEEK PATHAK , OCT 29, 2014, 16:44 IST 121K   1/28 1 वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में… मणियों के चमत्कार से हम सब अचम्भे रह जाएंगे। वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में कई तरह की चमत्कारिक मणियों का जिक्र मिलता है। 2/28 2 फिल्मों में मणि पौराणिक कथाओं में सर्प के सिर पर मणि के होने का उल्लेख मिलता है। इसे कई फिल्मों में भी फिल्माया गया है। 3/28 3 पाताल लोक और मणि पाताल लोक मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। सभी तरह की मणियों पर सर्पराज वासुकि का अधिकार है। 4/28 4 क्या होती है मणि? वस्तुतः मणि एक प्रकार का चमकता हुआ पत्थर होता है। मणि को हीरे की श्रेणी में रखा जा सकता है। 5/28 5 मणि और हम मणि वास्तव में क्या होती थी यह भी अपने आप में एक रहस्य है। जिसके भी पास मणि होती थी, वह कुछ भी कर सकता था। 6/28 6 अश्वत्थामा और मणि जैसा कि हम जानते हैं कि अश्वत्थामा के पास मणि थी जिसके बल पर वह शक्तिशाली और अमर हो गया था। रावण ने कुबेर से चंद्रकांत नाम की मणि छीन ली थी। 7/28 7 कौन-कौन-सी मणियां? मान्यता है कि मणियां कई प्रकार की ...

किसके पास थी कौन-सी चमत्कारिक मणि, जानिए...

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किसके पास थी कौन-सी चमत्कारिक मणि, जानिए... वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में कई तरह की चमत्कारिक मणियों का जिक्र मिलता है। पौराणिक कथाओं में सर्प के सिर पर मणि के होने का उल्लेख मिलता है। पाताल लोक मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। माना जाता है कि सभी तरह की मणियों पर सर्पराज वासुकि का अधिकार है। मणि एक प्रकार का चमकता हुआ पत्थर होता है। मणि को हीरे की श्रेणी में रखा जा सकता है। मणि होती थी यह भी अपने आप में एक रहस्य है। जिसके भी पास मणि होती थी वह कुछ भी कर सकता था।    रहस्यमयी 10 मणियां, जानिए कौन-सी   आपने नाम सुना होगा,  नीलमणि,  चंद्रकांता मणि,  घृत  मणि,  तैल मणि,  भीष्मक मणि,  उपलक मणि,  स्फटिक मणि,  पारस मणि,  उलूक मणि,  लाजावर्त मणि,  मासर मणि।  लेकिन हम इन सब के बारे में नहीं बता रहे हैं आ जाओ जानते हैं कि किस देवता या मनुष्‍य के पास थी कौन-सी ऐसी चमत्कारिक मणि जिसके माध्यम से वह प्रसिद्ध या शक्तिशाली हुआ।   अगले पन्ने पर पहली चमत्कारिक मणि...   स्यमंतक मणि :  कुछ लोग कोहि...

800 वर्ष जुने असे रहस्यमय 11 चर्च, ज्यांच्या आख्यायिका आजही लोकांना करतात हैराण!

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 वर्ष जुने असे रहस्यमय 11 चर्च, ज्यांच्या आख्यायिका आजही लोकांना करतात हैराण! By ऑनलाइन लोकमत on Thu, April 02, 2020 12:37pm     जगभरात अशा अनेक इमारती आणि ठिकाणं आहेत जी फार जुनी आहेत. आश्चर्याची बाब म्हणजे या ठिकाणांबाबत काहीना काही रहस्य जुळलेलं आहे. आज आम्ही तुम्हाला काही अशा रहस्यमय चर्चबाबत सांगणार आहोत जे साधारण 800 वर्षे जुने आहेत. हे चर्च तयार होण्यामागे अनेक कारणे प्रचलित आहेत आणि ही कारणे वाचून कुणीही थक्क होईल. चला जाणून घेऊ काय आहे यांचं रहस्य.... हे चर्च लालिबेलाचे चर्च या नावाने ओळखले जातात.जे इथिओपियाच्या लालिबेला शहरात आहेत. इथे एकूण 11 असे चर्च आहेत जे डोंगर फोडून फारच सुंदरतेने तयार करण्यात आले आहेत. असे म्हणतात की, लाल आणि नारंगी रंगाचे हे डोंगर ज्वालामुखी फुटल्यावर लाव्हारसापासून तयार झाले होते. हा राजा जाग्वे राजवंशाचा होता. त्याच्या नावावरूनच या शहराला नाव देण्यात आलं आणि चर्चना सुद्धा त्याच्याच नावाने ओळखलं जातं. (Image Credit : tripadvisor.in) असे म्हणतात की, राजा लालिबेला चर्च तयार करून या ठिकाणाला आफ्रिकेतील येरूशलेम करायचं होतं. येरूशलेम हे ख्र...

आख्यायिका

  आख्यायिका कांचीनगरीत कनक नावाचा राजा होता. त्याला नवसाने एक मुलगी झाली तिचे नांव किशोरी होते. तिची पत्रिका पाहून ज्योतिषाने सांगितले जो तिच्याशी विवाह करेल त्याच्या अंगावर वीज पडून तो मरेल. एका ब्राह्मणाने किशोरीला द्वादशाक्षरी विष्णू मंत्र सांगितला त्या मंत्राचा जप करावा, तुळशीची पूजा व कार्तिक शुद्ध नवमीला तिचा विष्णूशी विवाह लावावा असे व्रत त्यांनी सांगितले व ती त्याप्रमाणे करू लागली. एकदा एक गंध्याने तिला पाहिले व तो तिच्यावर मोहित झाला माळिणीच्या मदतीने स्त्री वेष घेऊन त्या माळिणीबरोबर तो किशोरीकडे आला. ती माळीण म्हणाली, ही माझी मुलगी आहे. फुलांची रचना करण्यात तरबेज आहे. तुला देवासाठी फुलांच्या नाना प्रकारच्या रचना करून देत जाईल. गंधी किशोरीकडे दासी म्हणून राहू लागला. कांची राजाचा पुत्र मुकुंद हाही किशोरीवर मोहित झाला होता. तो सूर्याची खूप उपासना करायचा. सूर्याने स्वप्नात दृष्टांत देऊन त्याला सांगितले की, तू किशोरीचा नाद सोडून दे तिच्याशी विवाह करणारा वीज पडून मरेल. मुकुंद सूर्याला म्हणाला, तुझ्यासारख्या देवाला तिचे वैधव्य टाळता येईल. किशोरी मला लाभली नाही तर मी अन्न पाणी वर...

दोन आख्यायिका

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येथे सातत्यपूर्ण मनःशांती मिळवण्याच्या सोप्या व व्यावहारीक उपायांची माहिती आहे. दोन आख्यायिका Date:  रवि, 13 नोव्हें 2011 मना राघवेंवीण आशा नको रें। मना मानवाची नको कीर्ति तूं रे।। जया वर्णिती वेद शास्त्रें पुराणें। तया वर्णिता सर्वही श्लाघ्यवाणें।।18।। दोन आख्यायिका आहेत. श्री समर्थ एकदा पंढरपूरला गेले. विठ्ठलापुढे येऊन उभे राहिले आणि म्हणू लागले की, “अरे रामा, तू इकडे कोठे येऊन उभा राहिलास? “ श्री रामदासांना सर्व जग राममय होते. दुसरी आख्यायिका तुकाराम महाराजांची. त्यांना कोणी विचारले की, “वेदात काय लिहिले आहे? “ तुकाराम महाराज म्हणाले, “वेदात लिहिले आहे त्याचा अर्थ इतकाच की, विठ्ठलाला शरण जावे. “ तेच एकाग्रतेचे सूत्र मनाचा अठरावा श्लोक सांगतो. तिसऱ्या ओळीत श्रीरामदास त्या अर्थाने सांगत आहेत की वेदातसुध्दा रामाचेच वर्णन करतात. याला कोणी कालविपर्यास म्हणू नये. मनाची एकाग्रता होते तेव्हा काळ हा अखंड वहात राहतो. आणि मनाच्या श्लोकांचे उद्दिष्टच मुळी मनाला एकाग्रता शिकवणे आहे. या एकाग्रतेला समर्थ असे माध्यम म्हणजे रामाचे, श्री रामदासांनी पत्करले आहे. म्हणून ते सांगत आहेत की. “राघवाशिवा...

मूळ पाकिस्तानच्या हिंगलाज देवीची रंजक आख्यायिका....

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Navratri festival 2019 : मूळ पाकिस्तानच्या हिंगलाज देवीची रंजक आख्यायिका.... मंगळवार, 1 ऑक्टोबर 2019 निफाड तालुक्यातील खेडे (उगांव) येथील हिंगलाज देवीमातेचा नवरात्रोत्सव उत्साह व भक्तिमय वातावरणात सुरु झाला आहे. मातेचे मुळ पीठ पाकिस्तान व बलुचिस्थान सीमेवर असून हिंगलाज देवीचा निफाडमध्ये जयजयकार करत घटस्थापना करण्यात आली. मंदिर परिसरात आकर्षक विद्युतरोषणाई करण्यात आली आहे. तसेच या ठिकाणी हिंगलाज मातेच्या नवसपुर्ती व सेवेसाठी अनेक महिला‌ पुरुष नवरात्रीनिमित्त घटी बसले आहेत. दररोज पहाटेपासुन पंचक्रोशितील भाविकांची मातेच्या दर्शनासाठी रिघ लागत आहे. परंपरेनुसार  बुधवार (ता.२) ऑक्टोबरला हिंगलाज देवीचा मोठा यात्रोत्सव  होणार आहे   नाशिक : निफाड तालुक्यातील खेडे (उगांव) येथील हिंगलाज देवीमातेचा नवरात्रोत्सव उत्साह व भक्तिमय वातावरणात सुरु झाला आहे. मातेचे मुळ पीठ पाकिस्तान व बलुचिस्थान सीमेवर असून हिंगलाज देवीचा निफाडमध्ये जयजयकार करत घटस्थापना करण्यात आली. मंदिर परिसरात आकर्षक विद्युतरोषणाई करण्यात आली आहे. तसेच या ठिकाणी हिंगलाज मातेच्या नवसपुर्ती व सेवेसाठी अनेक महिला‌ पुरुष न...